Saturday, November 19, 2011

Bandh Kamra

Title: Badh Kamra

Written By : Sarojini Sahoo

Publisher: Rajpal & Sons

Genre: Novel

Language: Hindi

Price : INR 150/-

Format : Paperback

ISBN : 978 81 7028 954 8

Online Seller:

http://www.rajpalpublishing.com/indetail.asp?id=2545&aw&Bandh+Kamra-Sarojini+Sahoo




राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास

(‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’)



‘बंद कमरा’ उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित किया गया है,व्यक्ति और राष्ट्र के बीच उत्पन्न हुए द्वन्द-प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया है। इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीकत को उकेरती है ,इराक के ऊपर अमेरिका का आक्रमण किसकी इच्छा से हुआ था जार्ज बुश या अमेरिका की ? गर्बाचोव न होते तो पेरेस्त्रोइका संभव हो पाती क्या रूस में ? इन बातों से यह जाहिर होता है राष्ट्र नामक किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। शासक से राष्ट्र कभी बड़ा नहीं हो पाता है। शासक के मूड़ और मर्जी से परिचालित होता है एक विशाल लोकतान्त्रिक संस्था, जिसमे करोड़ों लोगों की आस्था टिकी हुई होती है, इसलिए राष्ट्र और व्यक्ति के संघर्ष हमेशा व्यक्ति व्यक्ति के निजी संघर्ष से उत्पन्न होते हैं।“

प्राक्कथन

एक लम्बे अरसे से डॉ. सरोजिनी साहू ओड़िया साहित्य में अपनी सृजनशीलता के लिए पाठकों में चर्चा का विषय रही हैं। सप्रतिभ भाषा-शैली, कथ्य-संप्रेषण और नवीन चेतना-स्तर के कारण वह अपने समसामायिक साहित्यकारों में एक अलग पहचान रखती है। आपका ओडिया उपन्यास ‘गंभीरी घर’ (हिंदी में ‘बंद कमरा ‘) ओडिशा की प्रसिद्ध ‘गल्प-पत्रिका’ के पूजा-अंक में प्रकाशित होते ही ओडिया -पाठकों में चर्चा का एक जबरदस्त विषय बना । पहले की तरह डॉ.सरोजिनी की हर रचनाओं की तरह यह उपन्यास भी आकर्षण का केन्द्र बना। भले ही, कुछ पाठकों में लेखिका के व्यक्तव्य की स्मार्टनेस नागवार गुजरी, मगर अनेक पाठकों ने न केवल इसे सहर्ष स्वीकार किया,बल्कि इस उपन्यास को पढ़कर भावाभिभूत भी हुए .

लेखिका की कहानियों और उपन्यासों में ऎसी ही जादुई विलक्षणता है, जो पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। कुछ पाठकों ने उपन्यासकार को उसका खुद एक पात्र समझने की गलती की , मगर यह सार्वभौमिक सत्य है, किसी उपन्यास की सफलता इस बात पर निर्भर करती है जहां पाठकों ने उसके अन्दर किन्हीं छिपी हुई सत्य-संवेदनाओं को अपने भीतर अनुभव किया हो।

क्या यह उपन्यास वास्तव में केवल प्रेम पर आधारित उपन्यास है ? क्या लेखिका हिंदु प्रेमिका और मुस्लिम प्रेमी के बारे में अपनी बात रखना चाहती है या भारतीय नारी और पाकिस्तानी पुरुष का अंतरजाल के माध्यम से विकसित हुई यह प्रेम-कहानी को दर्शाना चाहती है ?

कुछ ओडिया पाठक इसे यौन-स्वतंत्रता से संबंधित उपन्यास मानते हैं, जबकि इन सारी चीजों से ऊपर उठकर ‘गंभीरी घर’ का कथ्य और कथानक की व्यापकता और ज्यादा विशाल हो जाती है। इस उपन्यास में व्यक्ति की निसंगता, विशेष रूप से भारतीय नारी की आधुनिक जीवन -धारा में अकेलेपन और रिक्तता की बातें दर्शाई गई है। इस उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित किया गया है,व्यक्ति और राष्ट्र के बीच उत्पन्न हुए द्वन्द-प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया है। उपन्यास की मुख्य नायिका कूकी के एक ओर है पतिऔर दूसरी तरफ प्रेमी; पति अनिकेत और प्रेमी शफीक। पति की दुनिया में घर-गृहस्थी मानो संवेदनहीन और पत्थर बन चुकी हो, और प्रेमी शफीक की काल्पनिक दुनिया का कहना ही क्या ! शफीक को देखा तक नहीं कूकी ने, स्पर्श करना तो बहुत दूर की बात। शायद इसलिए शफीक के लिए उसके हृदय में उसको पाने की व्याकुलता स्वाभाविक है। परंतु उसकी पहुँच से परे है शफीक का आकाश।बाहर से प्रेम प्रदर्शन नहीं करने वाला दंभी अनिकेत कूकी को प्यार नहीं करता था, ऐसी बात नहीं थी। सभी के सामने कूकी को अपने शरीर के प्रति लापरवाही बरतने से नाराज होकर कूकी पर हाथ उठाने के पीछे भी कहीं न कहीं उसकी प्रेम की भावना छिपी हुई थी। इसी तरह वह कूकी की तबीयत खराब हो जाने पर रात रात जगकर उसकी सेवा करता था । इन दो परस्पर विरोधी पुरुष-व्यक्तित्वों को लेखिका ने अनिकेत के माध्यम से बहुत ही निपुणता से वर्णन किया है। उपन्यास के अंत में अनिकेत की विदेश-यात्रा के समय पाठक देखेंगे, अनिकेत और कूकी में घनिष्ठ प्रेम है।

जबकि बावन स्त्रियों के साथ संभोग किया हुआ, घर में दो बीवियां रखने वाला शफीक विकृत मानसिकता वाला होते हुए भी एक सफल चित्रकार है। मेरा यह मानना है जैसे लेखिका शफीक के अंदर पिकासो को ढूंढ रही हो। पिकासो ने कई स्त्रियों के साथ संबंध बनाए थे। उनके प्रेम और उनकी कामुकता के प्रति आसक्ति भरे खोजी दृष्टिकोण ने उसे विश्व प्रसिद्ध चित्रकार बना दिया था। ये सारी बातें शफीक के अंदर पाई जाती है। परंतु शफीक प्रेमी स्वभाव का है, इसलिए लेखिका ने कूकी का उसके प्रति प्रेम भाव को कई सुन्दर प्रेम कविताओं के पद्यांशों के जरिए दर्शाया है। जहां अनिकेत का आगमन होता है वहाँ भाषा गद्य का रूप ले लेती है। पद्य और गद्य शैली में लिखा गया यह उपन्यास मानवीय हृदय के माधुर्य और तिक्तता को एक साथ प्रकट करता है।

क्या यही है भारतीय नारी की नियति ? हमारी समाज-व्यवस्था, हमारी जीवनचर्या, हमारे संस्कार नारी को अलग कर देते हैं । आधुनिकता, शिक्षा-दीक्षा, संविधान सम्मत समस्त अधिकार होते हुए भी एक नारी अपने प्रेमी और पति से दोनो से विच्छिन्न होकर रह जाती है। वह कैदी है, वह खुद ही अपने को कैद कर लेती है संवेदनशील मातृत्व की सलाखों के पीछे घर नामक चारदीवारी के अंदर। इस विच्छिन्नता बोध को प्रतीक है ‘गंभीरी घर’।

ट्रेजेडी उपन्यास होते हुए भी प्रेम के प्रति आस्थाबोध पाठकों को नजर आएगा। प्रेम के प्रति लेखिका का दृष्टिकोण प्रचलित धारणाओं से उठकर स्वतंत्र रूप में है। पति अनिकेत के प्रेम और प्रेमी शफीक के प्रेम में जो अंतर है, उसे लेखिका ने बड़े से सूक्ष्म ढंग से प्रस्तुत किया है। अनिकेत के प्रेम में है प्रज्ञा और शफीक के प्रेम में आवेग और रोमांच का बाहुल्य ।

एक स्त्री का निश्चल प्यार पाकर एक पर्वटेड कामुक आदमी क्रमशः परफेक्टशन की ओर अग्रसर होता है। स्वयं को यौनता से पृथक करते हुए प्रेम पथ पर बढता जाता है। उसे नारी का शरीर और आकर्षित नहीं करता है। रूखसाना उसके लिए देवी है, इसलिए कूकी के भीतर वह रूखसाना को देखता है।

कट्टरपंथ , धार्मिक-बंधन, देश, राजनैतिक, भौगोलिक सीमाओं से ऊपर है रूखसाना की स्थिति। इसलिए शफीक कहता है, मेरा कोई अपना देश नहीं है, कलाकार के लिए कोई एक विशेष देश नहीं होता है। उसके पास होते हैं केवल प्रेम के नैसर्गिक संबंध।

इस उपन्यास में कूकी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर लेखिका ने अपने सक्षम लेखन का परिचय दिया है। कुमारी-साधना, ओशों की सम्भोग से समाधि वाली साधना, रागानुराग भक्ति-मार्ग में कूकी विश्वास नहीं रखती थी। वह कहती थी, “शफीक, नहीं, मैं ओशो के दिखाए मार्ग में तुम्हें सहयोग नहीं कर पाऊँगी। मैं अति साधारण औरत हूँ। मेरी आशा और आकांक्षाएं सभी साधारण सी है। मैंअपने प्रेमी से केवल प्रेम की उम्मीद करती हूँ। जीवन जीने की खुराक चाहती हूँ। मुझे किसी भी साधना से क्या लेना-देना ? मुझे मोक्ष प्राप्ति की कोई इच्छा नहीं है। मैं ‘नेरात्मा’बनकर बैठी रहूंगी और तुम व्याकुल शबर की तरह मेरे पास भागे दौड़े आओगे।”

पिकासो के ‘ला कुक्कू मेगनिफिक’ तस्वीर के जरिए लेखिका ने कूकी के अपराध-बोध को दिखाया है। ‘ला कुक्कू मेगनिफिक’ का मतलब होता है, जिस पति की पत्नी अन्य पुरूषों के साथ प्रेम करती है। वह तस्वीर बहुत ही गजब खूबसूरत थी। उस तस्वीर में एक नंगी औरत पहिए वाली गाड़ी में टांगों को उठाकर एक के ऊपर दूसरे को रखकर सोई हुई है। टांगों के भीतर से उसके यौनांग साफ़ दिखाई पड़ता है। एक नग्न पुरुष उस पहिए वाली गाड़ी को खींच रहा है। छुपकर कुछ नंगे लोग उस दृश्य को देख रहे हैं और उस तस्वीर के बायी ओर एक फ्रॉक पहने लड़की हाथ में चाबुक लिए खड़ी है। अपराध-बोध की सुंदर व्याख्या लेखिका और पिकासो की जुगलबंदी इस उपन्यास को एक विशिष्ट दर्जा प्रदान करती है।

इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीकत को उकेरती है ,इराक के ऊपर अमेरिका का आक्रमण किसकी इच्छा से हुआ था जार्ज बुश या अमेरिका की ? गर्बाचोव न होते तो पेरेस्त्रोइका संभव हो पाती क्या रूस में ? इन बातों से यह जाहिर होता है राष्ट्र नामक किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। शासक से राष्ट्र कभी बड़ा नहीं हो पाता है। शासक के मूड़ और मर्जी से परिचालित होता है एक विशाल लोकतान्त्रिक संस्था, जिसमे करोड़ों लोगों की आस्था टिकी हुई होती है, इसलिए राष्ट्र और व्यक्ति के संघर्ष हमेशा व्यक्ति व्यक्ति के निजी संघर्ष से उत्पन्न होते हैं। लंदन बम ब्लास्ट में शफीक के गिरफ्तार होने के पीछे आतंकवाद कोई कारण नहीं है, वह तो किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखता था, वह तो इस बात को मानता था कि उसका कोई देश नहीं है, वह कट्टरपंथियों का विरोध भी करता था। वह गिरफ्तार हुआ तो केवल एक छोटे से कारण की वजह से। तबुस्सम और मिल्टरी ऑफिसर के आपसी वैमनस्य और मतभेद से। इस नितांत व्यक्तिगत घटना को एक अंतराष्ट्रीय रूप देकर उसे गिरफ्तार किया गया था।

लेखिका ने इस उपन्यास में आतंकवाद के मलभूत कारणों को जानने की कोशिश की है। अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों को हटाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान में आतंकवादियों का प्रशिक्षण प्रदान किया था। इस्लाम की सुरक्षा के नाम पर ,जेहाद के नाम पर, विश्व के हर प्रांत से मुसलमानों को एकत्रित कर गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया था, अस्त्र-शस्त्र बांटे थे। वहीं से शुरू होता है आतंकवाद का बीजारोपण। रूसी सैनिकों ने अफगानिस्तान से हट जाने के बाद अमेरिका भी वहां से हट गया था, क्योंकि वह अप्रत्क्षतः अपने मकसद में सफल हो गया था । वहां से हटते समय छोड़ गया था अस्त्र-शस्त्रों की भरमार खेंपें और उनके ट्रेनिंग कैंप। रह गए थे सिर्फ तालिबानी और जेहादी। उन्होंने कुवैत जैसे भोलेभाले देश को एनजीओ के माध्यम से मुफ्त शिक्षा का प्रलोभन दिखाकर कई कौमी मदरसे खोलें । जहाँ छोटे-छोटे बच्चे धीरे-धीरे मानवीय बंबों और आत्मघाती दस्तों में बदल गए।इस तरह इस उपन्यास में घरेलू आतंकवाद से वैश्विक आतंकवाद के संभावित कारणों का अच्छे ठंग से ताना बना बुना गया है ।

लेखिका ने इसलिए लिखा है,“पूछो, पूछो , अमेरिका को पूछो, अफगानिस्तान से रूस को हटाने के लिए जो हथियार तैयार किए थे, और हृदयहीन रोबोट बनाए थे, अब वे कहाँ जाएंगे ? कहाँ गाडेंगे इतने हथियार ? कैसे भूलेंगे तालिम के वे दिन ? गोला, बारूद, हथियारतो हमेशा खून मांगता है। मांगता है जीवन।”

इसलिए आतंकवाद जितना धर्म आश्रित नहीं होता है, उससे ज्यादा रष्ट्र आश्रित होता है। संभवत अमेरिका का शीत-युद्ध राजनीति लादेन का सृष्टा है। इसलिए लेखिका के उस उपन्यास में अन्तरंग प्रेम के साथ साथ कई बारीक दार्शनिक पहलूओं का जिक्र हैं।

( ‘रेप तथा अन्य कहानियां’ (2011 ) के बाद राजपाल एंड साँस ने सरोजिनी साहू के चर्चित उपन्यास ‘( अंग्रेजी : ‘The Dark Abode/ ओडिया ‘गंभीरी घर’) ’ का हिंदी अनुवाद बंद कमरा‘ शीर्षक से प्रकाशित किया है.यह उपन्यास पहले से ही मलयालम में ‘इरुंडा कुदरमा’ तथा बंगला में’ मिथ्या गेरोस्थाली’ शीर्षक से केरल तथा बंगला देश से प्रकाशित हो चुकी है. इस उपन्यास का ऑनलाइन क्रय हेतु राजपाल एंड साँस पर जाएँ )

बंगला देश की प्रख्यात लेखिका सेलिना होसेन ने बंगला पत्रिका में इस उपन्यास की समीक्षा की थी, जिसका अंग्रेजी अनुवाद आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं. http://redroom.com/member/sarojini-sahoo/reviews/the-dark-abode-an-indian-oriya-novel-of-sarojini-sahoo

“Different aspects of the crisis of a woman’s life has been described in this novel. The woman fights with herself. This inner conflict is of a family, of a society, of the time. The love of the heroine for her husband, her illicit love for another with promises to wait for him, all these tell us that the name of this novel is ‘The Dark Abode’. The woman is there to drag on this false housewifery. The area which is marked exclusively as belonging to her, the housewife under the patriarchal system, is too easily intruded by many relationships, many attachments. The lady, by using technology and analyzing human behaviour, understands that that area is not exclusively hers. There dwells many maladjustments, many falsehoods.”

अनुवादक : दिनेश कुमार माली

Friday, August 12, 2011

Musings with Sarojini Sahoo: Prameela K.P.

(Prameela KP with Sarojini Sahoo at International Book Fair, Calicut , 2008)


(Dr. Prameela K.P, the Malayalam critics, writer, poet and translator has been awarded with Devi Shankar Awasthi Samman for her Hindi book ‘Kavita ke Stri Paksha’ on 5. 04. 2010. She is the first person from South India to receive this award meant for Hindi writing.

Well known for her frankness, Dr. Sarojini Sahoo is a prime figure and trendsetter of feminism in contemporary Oriya literature. For her feminism is not a gender problem or any confrontational attack on male hegemony. She accepts feminism as a total entity of femalehood, which is completely separate from the man's world. She writes with a greater consciousness of women bodies, which would create a more honest and appropriate style of openness, fragmentation and non-linearity. Her fictions always project a feminine sensibility from puberty to menopause. The feminine feelings like restrictions in the adolescence, the pregnancy, the fear factors like being raped or being condemned by society and the concept of a bad girl etc always have the thematic exposure in her novels and short stories. More details on her are available in her profile.

Here Prameela K.P engages Sarojini Sahoo in a conversation.)

1. As a woman, what is writing for you all about? Do you look who wrote

the writing while read?

Writing for me never any day coined with any social responsibility. It is a media for

self expression .I want to communicate my feelings,ideas,experiences with my

reader. It is true that I am not a propagandist or socially so committed in my

writings , rather I stress importance on the artistic aesthetic sense always and

you can say I am more committed to my writings than to society. Never I think that

my writings could change the society , but as Camus told once, “I always want to

hang myself as I am , so that the readers could see their own image in me. But

along with my stories, I want to portray the society I am communicating with” .As

I am residing in a semi urban-semi rural surroundings, far away from Big City

Culture, I have my profit to encounter the very down trodden feminine characters

and culture , which always are a part of my fiction.

When we pick a book from a show case or we start reading any article from a

magazine , we first choose the name of the writer ,because we were acquainted

with author’s style and ideas and always we compare how much the author

made progress in these writings from his/her previous one . But some times

when we read anonymous writer who are not known to us, that time we look for

the style, language and skill of that writer

2. Why you write stories? Why you write prose not, poems?

I write poems also but I don’t know why it seems that poetry is an incompetent

media for me to express myself .I feel comfortable with fiction where I can open

myself freely .I often use my poems within the fiction and critiques say my prose

are more poetic.

3. You are known as Simone de beaviour of India. Where you put yourself

as an Indian women thinker?

I have never claimed any day myself to as similar as Simone.They are the

critiques who compare me with the great feminist. But as far the life style of mine,

some body may find some how similarity and dissimilarity with Simone.Like her,I

have an elder sister Sneha and a friend Sanju in my adolescent days and later

Sanju made a suicide .You can find these facts resemblance to the role of

Poupette(her sister) and Zaza (her friend) but dissimilarity is ,I have no such

involvement with them as Simone had. She had a living together relationship with

an eminent philosopher and writer Sartre and I married to Jagadish, who is a

prominent Indian writer and some how our understandings are similar to Sartre

and Simone where we don’t want to impose any bar in each other’s

freedom..Simone was an atheist, whereas I am not.Though Simone devotes a

sizeable section of the The Second Sex to the topic of motherhood but she was

never a biological mother, when I am a mother of two young kids. But I consider

these facts have no more importance to find any similarities or dissimilarities.

Probably the critiques find some how a similarity of Simone’s attempt to dissect

female heart and brain with my stories. In my writings, I want to only portray the

feelings of woman from her preschooler days to the post menopausal days. I

think, there are some feelings, , intricate mental agony and complexity which a

man couldn’t feel any day and these should be discussed in our fictions. I

portray the feelings of a pregnant lady (Waiting for Manna), hysteria

(Burkha,and Deshantari),fear of being miscarriage (Sakal:The Morning) false

pregnancy (Tarali Jauthiba Durga :The Melting Castle) , agony of and annoyance

of menopause (Damppatya:The Couple ),Lesbianism (Behind the scene) .I have

also portray the shaking situation of a sixty years old lady, who is still waiting for

her menopause and in every month her embarrassing situation when she find

herself in bleeding (Aparanha : Afternoon).Even in my story Jahllad (Butcher)

I have told the story of an infant who finds herself being raped by a caretaker

servant.

4. I have gone through some of your columns in magazines as well as on

net. Even then, please tell me how you look in to the role of a mother. Is it

supreme to be a mother?

I think being a mother is one of the most important jobs in the world .It is a

process of creation .Not only for the child in fetus but also later in making a child

life .Have you heard the mythical story of Madalasa .It is referred from

Markandeya Purana .Madalasa was a daughter of Vishwaketu . and was married

to king Ritudhwaj She bore three children Vikranth, Subahuand Shatrumardan

.These are the royal name and are named by the king .Madalasa taught them

about the ‘maya’ and taught them that how meaningless are their names for

them .Ultimately both of these three did not pay interest in royal duty and they

left the kingdom for ‘sanyas’ to achieve ‘moksha’ .The king got disappointed and

asked Madalasa to name their fourth son according to Madalasa’s wish

.Madalasa named her fourth child as “Alark” means ‘the mad dog’.She taught the

actual meaning of his name and the boy later became the successor of the king .I

hope , it is sufficient to answer whether to be a mother is supreme or not .

5. What will you say, motherhood as a choice by women, or a social

responsibility?

Motherhood brings some feminine sensuality which a woman can’t rule out from

her life. Desire for children is a feminine sensibility and while considering all

aspects ,we should not overlook the emotional suffering of infertility, pregnancy

loss, or stillbirth bear sorrows of a female but it is a sad saga that in south Asia ,

the feminine sensibility regarding motherhood has always been denied and it is

always mingled with a religious and social goal of patriarchal society and is not

subjected to a woman’s wish but of man’s. Here motherhood does not mean all

.To say correctly mother of a son is regarded highly and mother of a daughter

does not . In Hinduism a ‘son’ is the must requirement for a man to achieve his

personal ‘moksha’ after his death. So the Manu Smruti stresses upon “putrarthe

kriyate bharya”, which means a wife is required to bear sons .This is the most

insulting status of a woman in Hinduism and for that an infertile woman losses

her status in her family as well as in society. A mother without a son is also

considered as an infertile woman and these woman are treated like widow and

are barred from any social rituals and many orthodox Hindus in rural areas still

believe that encountering an infertile woman at morning is a bad sign for the

whole day. So, while discussing about mother hood in South Asian perspective,

we should not forget this status quo. I am telling you a very ugly story of mine

which I have painted in my story CHHI (Hatred) ,I was the second daughter of my

parents and after my birth my mother had to bear very insulting and harassing

moments ,So when my mother found herself as pregnant for third time, she

swallowed a thread worm from my excreta to get a male child ,as the rituals

admitted.. So , we can admit that being a mother is one of the most important

jobs in the world , but we should also confirm that motherhood is not only the

“choice” available to women. It should be confined to the ability of woman to say

"yes", as well as "no", to having children..

6. Patriarchal family system is a curse for Indian women. But we wanted to

maintain family. Is it fare to maintain it in the cost of girls only?

In one of my essay I wrote:” Patriarchal role in society is a devilish tradition

implied by the masculine world and our attempts should not be to create another

social milieu of exploitation and injustice .Feminism does not aim to destroy the

family structure or to attack on the emotional bondage of love and passion .The

motto of feminism should to create a new world with a new perspective of

equality and humanist attitude. Feminism must be a road to glorify female role

with their own sensibilities “ I think , family is a sharing partnership between two

people and it shouldn’t be fair to maintain in the cost of girls only , so I am

always for the right of ‘divorce’ for a woman .

7. If women writes, we fetch autobiography, where as men have no

problem. Why it is so?

Ours is a patriarchal society , where it is granted that a man could express his

opinion and decision on outer world, politics, social milieu but a woman couldn’t

.It is considered that a woman’s life is restricted within the four walls .I have

painted a country liquor shop of a rural village in my novel “Pakhibasa”

repeatedly but no critics in Oriya literature has pointed out that matter Till now ,

our reader’s mind is not prepare to accept a woman as a thinker or as a

philosopher . There were some interesting happenings with my story writings.

Gambhiri Ghara (The Dark Abode), the most controversial novel of mine was first

written in a story form and it was written for a special issue of an Oriya

periodicals. Before the publication of the short story it was rejected and I was

asked to submit another story in place of The Dark Abode. While inquiring the

reason of the rejection of my story, I was told that the editor would talk to my

husband. This comment of the chief editor made me irritated and I asked the

chief editor whether my husband has an authority over my writer self? As my

novel was on an extra marital relationship between a Hindu house wife and a

Pakistani artist , the editor could have suspicions whether this was written on any

personal affairs of mine .. But if it were written by a male writer, I believe, the

editor would not ask a question and would publish it .The patriarchy idea of the

chief editor made me to transform the short story to a novel.

8. What will be the form of an ideal family, for you?

Where there will be a feeling of sharing ness, trust and respect remained

between the family .Where any job is not confined with the gender and division of

labour is on the basis of requirement of current situations prevailed. Where

children are reared not only by mother but by parents .

9. We are living in paradoxes. We are against globalization, but live in it. We

are against liberalization, working in MNCs. We are feminists, but holding

patriarchal families. Any future change you expect?

Yes we are living with many contradictory situations .But for that can we reject

our life or leave our job or our refuse our family ?We have to fight with the

system. Recently a corporate body in air ways service retrenched thousands of

its employee without showing any cause .It is the nature of liberalization and

capitalism .But the corporate could not retrench these people because of mass

unrest among the company .This should be taken as an instance how we could

protect our rights against globalization .

10. Our sisters dipped in self-projection and sell themselves for the sake of

money and name. Is it matter to you?

Yes, any attempt to commercialize women body should be condemned .The

patriarchal society always want to make woman’s body as a commodity ,either in

social form or in historical way .Simone once told the patriarchal system

subjugate woman’s mind with mythical values of subordination .Our sisters who

are engaging themselves in self projection to earn money ,I think, are the tools

of that system..It is a patriarchal value based freedom for women .

11. Our others bringing up their sons almost in the same ways as earlier

generation did. How can we achieve difference for a democratic manwoman

relationship?

Patriarchal system is a centuries long tradition and it is not expected that all

could be changed in one night .We have to hopeful as we have marked

significant changes have been marked in our societies. The liberal idea to deny

patriarchal form of family , even an unsuccessful start up to make the live in

relationship legalized by Maharashtra state council of ministers , all make us

sure that the society slowly open its mind and heart for such liberalism .We have

to possess optimistic out look .

12. Now-a-days, psychiatrists say that women may be the second sex, but

weaker sex is men. What you experience? As feminists, Shall we do

something for men also?

Psychologists always deal with the virtual realities .Their all assumptions are

contradictory and opposite to their life .It is interesting that Freud , who was

famous for his psychoanalysis for human passion was a less passionate in his

life .However, it is not true that male are always weaker sex and such statements

should not be generalized with any of gender .Women are not any day weaker

sex .It is only the patriarchal system which makes them weaker .so is the male

community .We shouldn’t judge any community with such view .We have to

adopt an idea that man and woman are though different in their biological

features , they are eligible to enjoy equal human,civil,political and social rights as

human beings .

13. Concept of celebration of womanhood is highly misused by women

themselves. Do you agree?

Yes, it is true that some times this celebration of woman hood is misused .I think

the idea of love is the only way to make this equality dream to be realized .I am

always making stress on the role of love. Passion and sexuality in our

relationship .I have described all the dimensions of such human instincts in my

novel The Dark Abode

14. Coming back to literature, what will be the next ten years of women’s

writing in India?

In India most of the female writers either quit writing or make themselves more

adjustable to male dominated values, after their marriage. You find a shyness in

their voice while relating the truth and exposing their innerself.Even their

weaknesses or love relations are also not expressed clearly in fear of social

scandal of their character. A typical womanish shyness prevents them to write

their actual feelings towards sex and love. But slowly this tendency is diminishing

.After Kamala Das we have to wait for decades to find another one like her .But

there are more and more females coming with their frank writings and I think a

tremendous change in woman writing would have been seen in next ten years.

15. Are you happy with the increasing women’s participation in life, politics

as well as in literary field at present?

I think , women’s participation ,though statistically showed a remarkable

increasing graph , but there is some fallacy in reality .Today you can find more

and more female writers are coming out with their writings , but on the other hand

,you might have marked they are still ignored and are treated as inferior writer

than male . Uma Parmeswaran once wrote an article on Kamala Mrakandeya at

Sawnet , where she described that Salman Rushdie in his novels Shame and

The Satanic Verses raised the issues of race riots in Britain .But before 20 years

of Rushdie , Kamala Markendeya talked not only about the violence of racism but

also about other diasporic realities - educational degrees that are not given

accreditation, the resistance of immigrants to the expectations of the »host«

culture, chasms of communication between generations, cultural values and

needless cultural baggage. But the male dominated literary criticism placed

Rushdie as a pioneer of diasporic struggle. In politics also though all political

parties have assured to reserve 33% of seats in legislation in their menifesto, still it

has not been transformed to law as the male dominant political parties are

opposing the bill. In our local bodies , though some seats are reserved for the

women, but the real fact is though a woman enjoys the chair but the powers of

authority are handled by her husband always .In financial matter, though women

are allowed to work out side, but their rights on any house hold matters always

have been denied. A woman has to take charge of the kitchen , even if she is a

earning member and she has to go out side for her job .The husband will not

take charge of kitchen , though he remain un employed , as it is supposed for a

man to cook for her family is against his manhood .Legally, though according to

Court, sons and daughters have equal rights on patriarchal property but still now

as per practice, ownership changes hands from father to husband to son and the

role of a daughter or a daughter in law is denied.

So , still miles to go for feminism in India .

( Published in VOL. No: 10.1(July 2010) of Indian Journal of Post Colonial Literature.( ISSN 0974-7370).